रिपोर्ट : के .रवि ( दादा ) ,
आज कल हमें यू ट्यूब , ट्यूटर , फेसबुक के जरिए कई ऐसे
व्हिडिव्हाेज देखने को मिलते है जो कि काफी अजूबे होते है . जैसे के हमें एक ऐसा व्हिडिओ देखने मिला जिसमें कुछ अच्छे खासे लोग फुटपाथ से एक गंदे ,गरीब , बूढ़े को उठाकर अपनी कार में बिठाकर कई ले जाते हैं और अंजान शक्श को पानी से निहलाकर ,उसकी दाढ़ी मूछ कटवाकर ,उस नए कपड़े
पहनाकर इसे कुछ अच्छा सा खाना खिलाकर बदसूरत से खूबसूरत बनाकर छोड़ देते है . इस तरह के काफी अजूबे हमें अब आए दिन देखने को मिलते है .ठीक उसी तरह अपने पीटते गुज़र बसर के लिये भारत की ट्रेनों में भीख मांगते कई बच्चे , बूढ़े , दिव्यांग लोग हमें मुंबई की लाईफ लाईन मानी जाने वाली लोकल ट्रेन में आसानी से दिख जाते हैं . जो बहुत ही आम नज़ारा है। लेकिन एक पढ़ा लिखा इंसान जो पेशे से प्रोफेसर है ,वह लोकल ट्रेन में भीख मांगे यह जरूर हम सब के लिये थोड़ी अच्ंभे वाली बात है। तो अाइये हम जाने एक ऐसे इंसान के बारे में जिनका मकसद हर गरीब बच्चे को शिक्षा दिलाना और उन्हें अपने जीवन में आत्मनिर्भर तथा आत्मनिर्भर बनाना है ,जिसके लिए वह ट्रेनों में भीख माँग कर पैसे इकट्ठा करने में भी नहीं
हिचकिचाते |
हम बात कर रहे हैं संदीप देसाई नामक एक मरीन इंजीनियर की . अपने कैरियर की शुरुवात मरीन से की .और बाद में एसपी जैन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च में प्रोफेसर के रूप में काम किया। लेकिन गरीब और वंचित समुदाय के बच्चों की जिंदगी बदलने के उद्देश्य से उन्होंने नौकरी छोड़ ही दी ।
नौकरी के समय उन्हें प्रोजेक्ट्स के सिलसिले में अक्सर गांव देहातों में जाना पड़ता था, जहाँ उन्हें यह देख कर बड़ा दुख होता था की गांव के बच्चों की शिक्षा का कोई विशेष प्रबंध नहीं है , और ज्यादातर बच्चे अनपढ़ ही रहकर अपनी पूरी जिंदगी खेतों में काम करते या मजदूरी करते समय बिता देते हैं। संदीप इन बच्चों के लिये कुछ करना चाहते थे और इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये उन्होंने वर्ष 2001 में श्लोक पब्लिक फाउंडेशन नाम से एक ट्रस्ट की नींव रखी। इस ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करना है ।
उन्होंने मुंबई के झुग्गी एरिया में बच्चों की दुर्दशा देखकर वर्ष 2005 में गोरेगांव ईस्ट में एक स्कूल खोला, जहाँ आस पास के स झुग्गी से बच्चे पढ़ने आने लगे । कुछ ही समय में इस स्कूल में बच्चों की संख्या 700 तक पहुंच गयी और आगे कक्षा 8 तक वहाँ पढ़ाई होने लगी। हालाँकि वर्ष 2009 में उन्होंने स्कूल बंद कर दिया, जब सरकार ने RTE ACT पारित कर प्राइवेट स्कूलों में 25% सीट गरीब बच्चों के लिये आरक्षित कर दी। उसके बाद के कुछ साल उन्होंने और उनकी संस्था ने कई गरीब बच्चों का करीब 4 प्राइवेट स्कूलों में RTE ACT के तहत दाखिला कराया और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस नियम से अवगत कराया ।
लेकिन बहुत से स्कूल इस में आनाकानी करते थे लेकिन जब उनको यह बताया जाता था कि यदि उनके इस प्रकार के आचरण की रिपोर्ट सरकार को कर दी जाए तो उन पर 10 हज़ार प्रतिदिन का जुर्माना लग सकता है तब जाकर वह बच्चों को दाखिला देते थे ।
उसके बाद संदीप जी ने देखा कि बहुत सी जगह पर अब भी लोगों को इस नियम की जानकारी नहीं थी तब उनके मन में एक इंग्लिश स्कूल खोलने का विचार आया और इसके लिए उन्होंने सूखे की मार झेल चुका और बहुत से किसानों की आत्महत्या का गवाह बना महाराष्ट्र में यवतमाल को चुना, जहाँ बच्चों को मुफ्त यूनिफार्म, किताबें आदि दी जाती थी . जहां पिछले साल से खाना भी देना शुरू किया गया है । संदीप के लिये यह सब आसान नहीं रहा सबसे बड़ी चुनौती धन की थी। इसके लिये उन्होंने करीब 250 कॉर्पोरेट्स को ख़त लिखा लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली, किसी ने पूरे स्कूल को प्रायोजित करने की बजाय सिर्फ वार्षिक समारोह में मदद की बात कही, तो किसी ने अपना खुद का कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) का हवाला दे मदद से इनकार कर दिया ।
लेकिन संदीप जी ने हिम्मत नहीं हारी और सितम्बर 2010 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में जाकर आम यात्रियों से अपने इस नेक काम के लिए मदद माँगनी शुरू कर दी। एक शाम संदीप जी अपने सह ट्रस्टी प्रोफेसर नुरुल इस्लाम के साथ गोरेगांव स्टेशन पहुंचे। दोनों ट्रेन में चढ़ गये लेकिन नुरुल इस्लाम ने उन्हे कहा वह दूर खड़े रहेंगे आप जा कर लोंगों से मदद मांगे। संदीप के पास एक बैग था और उसमे प्लास्टिक का डब्बा था जिसमे उनकी संस्था का नाम लिखा था, लेकिन चार स्टेशन निकल जाने के बाद भी संकोचवश वह डिब्बा नहीं निकाल पाये। जब ट्रेन सांताक्रूज़ स्टेशन पहुंची तब उनके मित्र उनके पास आये और बोले या तो डिब्बा निकाल कर लोंगों से सहायता मांगो या फिर अगले स्टेशन पर हम उतरेंगे . और फिर कभी भी इस तरह का भिक मांगने का विचार मन में नहीं लायेंगे ।
तब पहली बार संदीप जी ने अपने बैग से डिब्बा निकल लोंगों से स्कूल खोलने के लिये “विद्या धनम, श्रेष्ठम धनम” बोलते हुये रेल यात्रियों से पैसो की मदद मांगी। शुरू में तो लोंगों को विश्वास नहीं हुआ लेकिन समय के साथ लोग उनकी मदद को खुद बखुद आगे आने लगे ।
संदीप द्वारा इस तरह पैसा इकट्ठा करने की चर्चा अब अखबारों और टेलीविज़न में भी होने लगी है। अभी तक जो कॉरपोरेट इनको मदद देने से इंकार कर रहे थे, अब वो भी इनके साथ जुड़ने लगे और 2001 -2016 में इनकी संस्था को 40 लाख रूपए का कॉरपोरेट डोनेशन प्राप्त हुआ। इसके साथ ही सिने अभिनेता सलमान खान ने भी इनको मदद की पेशकश की है ।
यह संदीप देसाई की गरीब बच्चों के लिये कुछ करने की लगन ही थी कि वह अपने मकसद में बहुत तक कामयाब हुए और समाज के लिये प्रेरणा के सबब बने .
हमारे इस देश में अनगिनत अजुबे मोहरे की तरह संदीप देसाई जैसे सामाजिक विचारो के कोहिनूर भिं है जिन्हें कुदरत ने लोहोकी सेवा के लिए ही जन्म दिया होता है .जो फिल्में हर शुक्रवार को प्रदर्शित होती है उनमेसे कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर 100 , 200, 300 करोड़ की कमाई का दावा करते है ऐसे फिल्मी लोग ने इक्कठा आकर संदीप देसाई जैसे शक्श की सोशल सोच को अपना हाथ ,साथ देना चाहिए .