( महिला दिन स्पेशल रिपोर्ट : के .रवि ( दादा ) ,
गड्डी झंडिए छलंगा मार दी . वोय मैनू याद आई मेरे यार दि ,
वो मैनू याद आईं मेरे यार दि .
वो मेरा बिछड़ा है यार ,
मेरा दिल बेकरार रब्बा खैर मेरे यार दी .
हो कुड़ी काहे को हिम्मत हार दि ,
मैनू याद आईं मेरे यार दि .
सन 1978 में प्रदर्शित विनोद मेहरा , अमजद खान , बिंदिया गोस्वामी , पल्लवी जोशी , रमेश देव जैसे कलाकारों अभिनीत दादा नामक हिंदी फिल्म के इस गीत के बोल कि कुछ पंक्तियां आज इतने सालो बाद भी यदि किसी पर उपयुक्त है तो वह हैै भोपाल की सूरमा
भोपालिन योगिता सूर्यवंशी जी का .
भोपाल शहर के हबीबीगंज की रहने वाली योगिता रघुवंशी नाम की महिला पिछले 15 सालों से देश भर में ट्रक चला रही हैं। अब तक वो देश के हर कोने में भ्रमण कर चुकी हैं।
दुनिया के किसी भी कोने में ट्रक चलाने वाले इस महिला ट्रक चालक को आज भी रोजाना काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन्हें ही नहीं कई ट्रक चालकों को कई बार भूखे-पेट भी सोना पड़ता है और कई बार तो थोड़ा सा ध्यान हट जाए तो रोड हादसों का शिकार भी होना पड़ता है। तब ये दिक्कतें और भी बड़ी हो जाती हैं जब कोई महिला दिन-रात ट्रक चला रही होती है।जब वह अपने भोपाल के घर से निकलती है तब घर में बच्चो के लिए 10/ 12 दिनो की सारी
तैयारियां कर के ही निकलती है . अब जब वह कई दिनों तक ट्रक चलाकर वापस अपने घर आती हैै, तब घर में पिछले कई दिनों का सारा सामान यंहा वंहा गिरा पड़ता है , जिसे योगिता जी अपनी भुक प्यास , नींद वैगरा को दबाकर उड़ी घरेलू काम में व्यस्त हो जाती है . और फिर 3/ 4 दिन का आराम कर ऑर्डर के अनुसार वह फिर से अपने ट्रक पर संवार हो जाती है .यह वही महिला योगिता रघुवंशी है जो पिछले 10 सालों से ट्रक चलाकर अपने दो बच्चों का पेट पाल रही हैं।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर की रहने वाली हैं यह योगिता रघुवंशी । 10 सालों से ट्रक चला रही 49 वर्षीय योगिता अपने दो बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए ट्रक चलाने का काम करती हैं। उनकी लड़की याशिका जो भोपाल के ओरिएंटल कॉलेज टेक्नॉलाजी मेे पढ़ाई कर रही है . साथ ही अपने लड़के को किसी भी हालत में ऊंची पढ़ाई के लिए एम टेक करने के लिए कैनेडा भेजना ही है . इसी जांबाज महिला योगिता ने अपनी कहानी के जरिए उन लोगों को करारा जवाब देने की कोशिश की है जिनका मानना है कि महिलाएं कई कार्यों में पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकती। इसीलिए
पुरुषों के दबदबे वाले इस क्षेत्र में भी इस महिला योगिता ने अपना परचम लहराया है .
योगिता रघुवंशी को
अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, मराठी और तेलुगु भाषा का भी काफी ज्ञान है . आज की महिलाएं पुरुषों के दबदबे वाले कामकाज में अपनी दावेदारी और हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रही उनमें इस महिला का नाम भी शामिल है .
पुरुषवादी प्रथाओं को तोड़कर आज योगिता एक ट्रक ड्राइवर हैं . पर उनका ये सफर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा. शुरू में भोपाल से हैद्राबाद तक अपना ड्रायव्हरी का सफ़र शुरू करने वाली योगिता ने अपने जीवन में बहुत सारी तकलीफें देखीं पर उन्होंने इसका भी डटकर सामना किया. योगिता आज ट्रक चलाते हुए देशभर में घूमती हैं .दो बच्चों की मां और सिंगल मदर योगिता रघुवंशी मानती हैं कि भारत में महिलाएं खेल और सेवा क्षेत्र के करियर में निखर रही हैं पर मै खुद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जगह बनाने में अब भी जद्दोजहद कर रही हूं .
योगिता रघुवंशी ने अच्छी कमाई के लिए ड्राइविंग का क्षेत्र चुना. वो कहती हैं कि इस जॉब में उन्हें हर दिन 2 से 3 हजार रुपये मिल जाते हैं और उसी पैसों से उन्हें अपने दो बच्चों का पालन-पोषण करना है. इस काम के साथ साथ उनका ड्राइविंग और अलग-अलग राज्यों की यात्रा का शौक भी पूरा हो जाता है. आज योगिता को ड्राइविंग करते हुए करीब 10 साल हो गए हैं. योगिता का मानना है कि ट्रक चलाते समय काफी चौंकना रहना पड़ता है. जरा सी चूक एक बड़े हादसे को दावत दे सकती है. उनके ट्रक चलाने के लंबे सफर में उन्हें कभी कोई डर और खतरा महसूस नहीं हुआ. इतना ही नहीं बाकी ड्राइवर भी उन्हें काफी प्रोत्साहित करते हैं. एक खूबसूरत महिला होने बाद भी हर ढाबों पर भी उनका गर्मजोशी से स्वागत किया जाता है.योगिता ने बहुत तकलीफें झेली हैं पर उन्होंने उसका भी डटकर सामना किया. 2003 में योगिता के पति राजबहादुर की हादसे में हुई मौत हुईं थी . उन्हीं की अंत्येष्टि में जाते समय योगिता के भाई की भी मौत हो गई थी. इन सभी तकलाफों का सामना करते हुए योगिता ने ट्रक ड्राइवर का पेशा चुना .वैसे ट्रक का सुनते ही रफ-टफ ड्राइवर्स का चेहरा आंखों के आगे उभर आता है। हम लोग ज्यादातर ट्रकों को पुरुषों से जोडक़र ही देखते हैं । पूरे भारत में यदि हमें ट्रक चालक की बड़ी संख्या में यदि कोई नजर आता है तो वह है पंजाबी समुदाय के लोग बड़े पैमाने पर नजर आते हैं .और ज्यादातर ट्रकों के मालिक भी इसी पंजाबी समुदाय के लोग ही है . जिनमें एक महिला के रूप में देश में पहली ट्रक चालक के रूप में योगिता रघुवंशी जी 10 पहियों का 73 टन वजनी मल्टी एक्सल ट्रक चलाती हैं । वे देश की अकेली सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिला ट्रक ड्राइवर हैं। जिन्होंने भोपाल के ही बरकतुल्ला युनिव्हरसिटी से पढ़ाई की है .
योगिताजी ऐसा किसी शौक या Record के लिए नहीं कर रही हैं . योगिता का कहना है कि ट्रक चलाना उनके लिए कोई चुनौती नहीं है न ही इस बात की फिक्र की दुनिया के लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं ।
योगिता के पति एडवोकेट थे , जो एक ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाते थे। सडक़ दुर्घटना में पति के निधन के बाद योगिता जिन अपने तीन ट्रकों के लिए ड्राइवर और हेल्पर भी रखे। लेकिन उनका ड्राइवर एक दुर्घटना में ट्रक को हैदराबाद में लावारिस छोडक़र भाग गया। फिर उन्होंने खुद ही ट्रक चलाने का फैसला किया। कभी वकील रह चुकी योगिता को इस पेशे से ज्यादा आय नहीं हो रही थी।
फिर उन्होंने एक बुटीक में काम करना शुरू किया , लेकिन इससे भी आय में कोई खास फर्क नहीं पड़ा। ऐसे में ही उन दो बच्चों की परवरिश को देखते हुए उन्होंने खुद भी ट्रक चलाने का ही निर्णय किया। बकौल योगिता ट्रक ड्राइवर बनना आसान काम नहीं था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। रात भर ट्रक चलाना, माल लादना, महिला होने के नाते नहाने की सुविधा न होना और सुरक्षा ने भी कभी उनके हौसले पस्त नहीं होने दिये .
योगिता रघुवंशी ने बताया कि, 'मुझे इस काम तक मेरी जरुरत लेकर आई। मेरी बेटी 8 साल की थी और बेटा 4 साल का था जब मेरे पति एक सड़क हादसे में मारे गए। फिर मुझे एहसास हुआ की उन्हें पढ़ाने के लिए मुझे काम करना होगा। मैंने बिजनेस चलाने के लिए एक ड्राइवर और एक हेल्पर को रखा। 6 महीने के अन्दर ही मेरा ड्राईवर भाग गया। उसने हैदराबाद के पास ट्रक को एक खेत में घुसा दिया था, मैं एक मैकेनिक और मेरे हेल्पर के साथ वहां गयी, 4 दिन में गाड़ी को सही कराया और भोपाल वापस आ गयी। चार दिन घर पर मेरे बच्चे अकेले थे। मैंने ड्राइविंग सीखने का ठान लिया था। शुरू के कुछ ट्रिप्स पर में हेल्पर को साथ लेकर जाती थी फिर जल्द ही मैं अकेले ट्रेवल करने लगी। कभी कभी जब मैं कुछ ऐसा सामान ले जा रही होती हूं जो जल्द खराब हो जायेंगे, तो मुझे रात भर ड्राइव करना पड़ता है। अगर मुझे नींद आती है, तो मैं फ्यूल पंप के पास ट्रक लगाकर एक छोटी सी झपकी ले लेती हूं। मैं एक पगड़ी पहनकर कॉलर ऊपर कर एक पुरुष जैसे चलती हूं, तब से जब खाना बनाने के दौरान हाईवे के किनारे 3 लोगों ने मुझपर हमला किया था, मैंने उन्हें भगा दिया। जब तक मदद आई, मैं चोटिल हो गयी थी, लेकिन मैंने उन्हें भी सबक सिखाया।
वैसे इंडिया के सड़कों पर ट्रक चलाना बिल्कुल भी आसान काम नहीं है। योगिता रघुवंशी जैसी स्त्री को ऐसा कर के लीक से हटकर चलते हुए देखना हम सभी के लिए प्रेरणा का एक स्त्रोत है । आज योगिता जी ने उस कड़ी मेहनत से ट्रक ड्रायव्हरी कर करके खुद का वहीं राजानस ट्रांसपोर्ट खोला है जिसकी वे मालकिन भी हैै .
हमारे इस इंडिया को योगिता रघुवंशी के साहस और जज्बे को सलाम करना चाहिए . हमें उम्मीद करनी चाहिए के योगिता की इस दर्द भरी , जाबांज सत्य से प्रेरणा लेकर डेढ़ की कई महिलाए आत्मनिर्भर बनेंगी .और हमारे पुरूष प्रधान समाज के लोकरूढ़ी को दूर करने में कामयाब होंगी .
योगिता रघुवंशी की इस जांबाजी पर हमें लगता है के जूस तर्ज पर फूलन जैसे पीड़ित महिला पर बैंडित क्युन जैसी फिल्म ,और किरण बेदी जैसी सरकारी अफसर पर भी फिल्म बनाई जा सकती तो देश के वह फिल्म निर्माता एवम् निर्देशक भी योगिता सूर्यवंशी जी पर एक मिसाल के रूप में फिल्म बनाए . क्यों की फिल्में भी समाज को आईना दिखाती है .