मशहूरियत दिलाने के नाम पर नकली मीडिया   PR कंपनी वालों की काला बाजारी  ? 

रिपोर्ट : के .रवि ( दादा )


हमें यह पता जरूर होना चाहिए के दुनिया मेे चाहे कितनी भी बड़ी मशहूर शक्शीयत  क्यू ना हो उन्हें भी मीडिया की पब्लिसिटी की जरूरत जरूर पड़ती है .फिर चाहे वह शक्श हो  या कोई प्रोडक्ट हो .इन्हीं में से ज्यादा पब्लिसिटी की जरूरत तो नेता ,अभिनेता एवम् उन चीज़ों को बेचने वालो को होती है जिन्हें अपनी चीजे बेचने के लिए  पब्लिसिटी की 
 मीडिया के जरीए जरूरत पड़ती है .जिसके के  लिए मुंबई शहर के साथ   देश बजे मेे पिआर वो की जरूरत पड़ती है .हम सबको यह बात बखूबी याद होगी के साल 2014 मेे नरेंद्र मोदी जी ने अपना पीआर मजबूत किया था  और उसिकी बदौलत वे देश के प्रधानमंत्री बने .
कुल  मिलकर हर किसी को मीडिया पब्लिसिटी की जरूरत पड़ती है .उस लिए लोग पिआरवो को ढूंढते हैं या किसिके पहचान से बुलाकर जो पीब्लिसिटी करनी है उस पर एग्रीमेंट वगैरा  करके या ना करके भी अपना मशहूरियत का काम उस 
पिआरवो को सोपते है .पर इनमे से ज्यादातर पिआर  कंपनी चलाने वाले लोग या तो नाजायज तरीके से अपनी कंपनी चलाते है .या  वे नकली होने के कारण सिर्फ  लोगो से पैसा लूटने का काम करते है .यह पिआरवो अपने ग्राहकों को यूं कहकर उलझा देते है के हम  10 टी वी मीडिया  मेे और 10 अखबारों में  आपकी न्यूज एवम् तस्वीर  छाप कर लाएंगे वगैरा वगैरा .जिसके लिए यह पीआर कंपनी वाले कुछ टी बी रिपोर्टर और अख़बार वालो को अपना वह इवेंट  कवर करने बुला लेते है . वहीं वह पत्रकार को मुंबई से दूर दूर कल्याण , ठाणे , नालासोपारा , विरार जैसे इलाकों या लोकल ट्रेन से लड़खडाते   या अपने निजी वाहन या  बाइक से वगैरा से इस इवेंट को मशहूरियत दिलाने पहुंच ही जाते है .पर जो पीआर कंपनी उस अपने ग्राहक से पैसे लेते है उनमें से कुछ भी पैसे वे उन पत्रकारों को नहीं देते .कुछ पिआर  वाले देते भी है तो वह भी नस के बराबर .क्यू के इन जैसे पत्रकारों के पास घर चलाने के लिए कोई दूसरी आमदनी नहीं होती तो वे उसी पीआरओ पर निर्भर रहते है .इनमे खास कर फिल्मी पीआरओ का इस तरह का ज्यादा व्यवहार रहता है . जिन्हें निर्माताओं से बड़ी मोटी रक्कम  मिलती है , जिनका वे पिआर का काम लेते है वे कोई आम या गरीब तबके के साधे लोग नहीं होते ,वे पैसों से मजबूत होते है ,जो पिआरवो को  उनके पैसे अग्निम ही देते है .फिर भी पत्रकारों को उतना  इज्जत नहीं मिलती जितना तसल्ली दे सके . ज्ञात हो के यह सब फिल्म इंडस्ट्री में ही होता है ऐसा नहीं यह हर पीआरवो  की दुनिया में पत्रकारों के साथ व्यवहार हो रहा है .
इनमे से निजी  PR कम्पनी वालों की काला बाजारी बड़े ही धूम धाम से चल रही है  .ज़ी हाँ  यह  PR कंपनी किसी भी इवेंट्स. प्रोग्राम. अवार्ड शो .फ़िल्म प्रमोशन .और कॉरपोरट सेक्टर के लोंगो को  चुना लगा रही है . दस मीडिया टीम या बीस मीडिया टीम बुलाने के नाम पर येह PR कंपनी वाले लाखों रुपये अपने क्लाइंट से वसूलते हैं और इन मीडिया टीम को बुलाते हैं लेकिन उन मीडिया के कमरामेन एवम् पत्रकार जो इतनी दूर से भाग भाग कर रिक्शे में बस में ट्रैन में अपने बाईक पर ख़र्च कर के आते हैं लेकिन इन PR कंपनी वाले इन केमरामेन को आने जाने का या उनके खाने पीने का ख़र्च तक नहीं देते ऐसे PR कंपनी वालों की  एजंसी या  न्यूज़ प्रकाशन हो तो बंद किया जाना चाहिए .ऐस तरह की PR कंपनी पर सरकार सख्त करवाई करे ! बहुत सारी PR कंपनीयों की  रिजिस्ट्री भी भारत सरकार या महाराष्ट्र सरकार में शायद  नहीं है  .हो  सकता है उद्धव ठाकरे जी की नई सरकार के पास भी  इसके लिए कोई प्रावधान ना हो तो भी वह होने जरूरी है .क्यू के पिआर एजंसी को जरूरत चाहे सरकार हो या निजी लोग हो सबको लगती है हैं .